उत्तराखंड सामान्य ज्ञान- श्रीदेव सुमन का परिचय

Uttarakhand GK उत्तराखंड सामान्य ज्ञान- श्रीदेव सुमन का परिचय  (Sri Dev Suman ka Jeevan Parichay)






श्रीदेव सुमन का जीवन परिचय (Sri Dev Suman ka Jeevan Parichay)


  1.   श्रीदेव सुमन(Sri dev Suman) का जन्म टिहरी गढ़वाल जनपद के जौलग्राम मे 25 मई सन 1915 को हुआ था.उनके बचपन का नाम श्रीदत्त था. इनके दो बड़े भाई पं. कमलनयन बडौनी व पं. परशुराम बडौनी तथा एक बहन गायत्री देवी थी।उनके पिता का नाम पं. हरिराम बडौनी तथा माता का नाम तारा देवी था।
  2. श्रीदेव सुमन (Sri dev Suman) सन् 1930 के नमक स्त्याग्रह में कूद पड़े ओर इस सिलसिले में उन्हे 13-14 दिन जेल में रखा गया और फिर कम उम्र बालक समझ कर छोड़ दिया।
  3. श्रीदेव सुमन (Sri dev Suman)ने ‘‘सुमन सौरभ’’ नाम से अपनी कविताओं का संग्रह भी प्रकाशित किया। 32 पेजों का यह संग्रह 17 जून 1937 को प्रकाशित हुआ था।
  4. उन्होने कुछ समय तक भाई परमांनन्द द्वारा संचालित हिन्दु महासभा का मुख्य पत्र ‘‘हिन्दु’’ में तथा जगदगुरु श्री शंकराचार्य द्वारा संचालित सप्ताहिक ‘‘धर्म-राज्य’’ के कार्यालय में भी काम किया। 
  5. पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने रत्न’ ’भूषण और प्रभाकर परीक्षायें उत्तीर्ण की फिर हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षायें भी उत्तीर्ण कीं।
  6. दिल्ली प्रवास के दौरान इनकी मुलाकात कई महान नेताओ से भी हुई जैसे आचार्य डा0 जाकिर हुसैन, नारायण दत्त, तथा प्रसिद्ध साहित्यकार कालेलकर के सम्पर्क में आये। कालेलकर जी सुमन से प्रभावित होकर इनको वर्धा ले गये यहीं पर महात्मा गांधी जी के दर्शन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। वर्धा में 5-6 महीने रहने के बाद अप्रैल 1937 में सुमन सीधे शिमला गये और वहां स्वागतकारिणी समिति का निर्माण (हिन्दी साहित्य सम्मेलन) करने व कार्यालय स्थापित करने में सहायता दी। 
  7. 22 मार्च 1938 को दिल्ली में ‘‘गढ़देश सेवा संघ’’ की स्थापना की। 
  8. सन् 1938 में ही उनका विवाह पडियार गांव की कन्या विनयलक्ष्मी के संग हुआ। जिन्होंने हर कार्य में इनका सहयोग किया, वे देवप्रयाग क्षेत्र से दो बार विधायक भी चुनी गईं।
  9. 23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मण्डल की स्थापना कर दी गयी। सुमन इसके मन्त्री चुने गये।
  10. 19 मार्च 1941 को देहरादून में प्रजा मण्डल के विशेष अधिवेशन का आयोजन किया और प्रस्ताव पारित हुआ कि टिहरी राज्य के अन्दर भी प्रजा मण्डल का गठन किया जाये।
  11. 30 अप्रैल 1941 को अपने गांव होते हुए टिहरी पहुंचे तो राज्य की पुलिस ने सबसे पहले उन्हे हिरासत में ले लिया।
  12. अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तो टिहरी आते समय इन्हें 29 अगस्त, 1942 को देवप्रयाग में ही गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिन मुनि की रेती जेल में रखने के बाद 6 सितम्बर को देहरादून जेल भेज दिया गया। ढ़ाई महीने देहरादून जेल में रखने के बाद इन्हें आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया, जहां ये 15 महीने नजरबन्द रखे गये। 19 नवम्बर, 1943 को आगरा जेल से रिहा हुये।
  13. 27 दिसम्बर, 1943 को इन्हें चम्बाखाल में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और ३० दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया, जहां से इनका शव ही बाहर आ सका।
  14. 30 दिसम्बर, 1943 से 15 जुलाई, 1944 तक 209 दिन इन्होंने टिहरी की नारकीय जेल में बिताये, इस दौरान इन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे
  15.  मजिस्ट्रेट रामराज सिंह की अदालत में टिहरी राज्य दंड संग्रह की धारा 124(अ) के अन्तर्गत मुकद्दमा दायर कर दिया और 21 फरवरी 1944 को टिहरी जेल में सुमन के मुकद्दमे की कार्यवाही शुरु हुई।
  16. 16-   उन्होने राज्य नरेश के सम्मुख अपनी तीन मांगो को पहुचाने के लिये कहा।-1-प्रजामण्डल को रजिस्टर्ड करके, राज्य के अन्दर सेवा करने का मौका दिया जाये। 2-मेरे झूठे मुकद्दमें की अपील स्वयं महाराज जी सुने। 3-मुझे पत्र-व्यवहार करने आदि की सुविधाएं दी जाये।अगर पन्द्रह दिनो के अन्दर मुझे इन मांगों का उत्तर नही मलेगा तो मैं आमरण अनशन शुरु कर दूंगा और तब मेरे निश्चय को कोई नही टाल सकेगा। जब किसी प्रकार का उत्तर नही मिला तो 3 मई 1944 से उन्होने अपना एतिहासिक अनशन शुरु कर दिया।
  17. अनशन शुरु होते ही उन पर अमानवीय अत्याचार शुरु कर दिये गये।उनको जबरदस्ती दूध पिलाने की कोशिश की जाती। उनके मुह से खून निकलने लगता पर उनका मुह नही खुल पातां जब लगातार यही क्रम चलता रहा तो अठाइसवें दिन एक डाक्टर व मजिस्ट्रेट जेल में आये ओर उन्होने सुमन के मुंह में नली से दूध डाला पर फौरन सुमन ने उल्टी कर सारा दूध बाहर निकाल दिया। इस तरह 48 वें दिन डा0 बेलीराम खुद सुमन के पास आये और अनशन तौड़ने को कहा, पर सुमन नही माने। 
  18. 25 जुलाई 1944 को शाम करीब चार बजे वह घड़ी आ गई, जब सुमन ने अपने देश, आदर्श व संस्था का नाम स्मरण करते हुए भगवान की गोद में अक्षय विश्राम लिया।इसी रात को जेल प्रशासन ने इनकी लाश एक कम्बल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना के संगम से नीचे तेज प्रवाह में फेंक दी।
  19. इनकी शहादत का जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उसने राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया, इनके बलिदान के बाद जनता के आन्दोलन ने टिहरी रियासत को प्रजामण्डल को वैधानिक करार दी पर मजबूर कर दिया, मई 1947 में उसका प्रथम अधिवेशन हुआ। 1948 में तो जनता ने देवप्रयाग, कीर्तिनगर और टिहरी पर अधिकार कर लिया और प्रजामण्डल का मंत्रिपरिषद गठित हुआ।  इसके बाद 1 अगस्त, 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारत गणराज्य में विलीनीकरण हो गया।








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