उत्तराखंड में होने वाली प्रमुख यात्राएं

उत्तराखण्ड की प्रमुख यात्राएं




1  नन्दा देवी  राजजात यात्रा

2  कैलाश मानसरोवर यात्रा 

3   हिल जात्रा

4   खतलिंग-रूद्रा देवी यात्रा

5   वारूणी यात्रा (उत्तरकाशी)

6  पंवाली कांठा-केदार यात्रा(टिहरी गढ़वाल)

7  सहस्त्र ताल-महाश्र ताल यात्रा




➢ नन्दा देवी  राजजात यात्रा 

नन्दा देवी राजजात को हिमालयी महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता है। नन्दा देवी राजजात  यात्रा   मां नंदा को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा है । मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलाश  (हिमालय) को भगवान शिव का निवास। यह यात्रा विश्व की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। इसकी कुल लम्बाई 280 किमी हैऔर यह यात्रा 19-20 दिन में  पूरी की जाती है । यह 12 वर्षों में एक बार आयोजित की जाती है।  विश्व प्रसिद्ध राजजात  यात्रा  उत्तराखंड के दोनों मण्डलों ( गढ़वाल तथा कुमाऊं )  की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।


नन्दा देवी राजजात यात्रा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु 
 
•    यह यात्रा 19-21 दिन में पूरी होती है।
•    यह यात्रा चमोली के नोटी गाँव से प्रारम्भ होकर होमकुण्ड चमोली तक चाँदपुर गढ़ी के वंशज और कासुआँ    गाँव के नेतृत्व में जाती है।
•    यह यात्रा प्रत्येक 12 वर्ष के बाद होती है।
•    इस यात्रा में पड़ने वाला बुग्याल बेदिनी बुग्याल है।
•    इस यात्रा का पुनः प्रारम्भ 1905 में लॉर्ड कर्जन के समय हुआ।
•    यात्रा के दौरान रूपकुण्ड पर रूपकुण्ड महोत्सव लगता है।





 

कैलाश मानसरोवर यात्रा

कैलाश मानसरोवर यात्रा  के  बारे में  ऐसी मान्यता है की यह जगह कुबेर की नगरी है।  यात्रा का आयोजन भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा  किया जाता है।  यह यात्रा हर साल जून के पहले  सप्ताह से प्रारम्भ तथा सितंबर के अंतिम सप्ताह में समाप्त  होती है । 160 किमी पैदल मार्ग  कैलाश मानसरोवर  यात्रा की समयावधि 40 दिन की होती है।


 कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग 

हल्द्वानी– ‘कौसानी — ‘ बागेश्वर— ‘ धारचूला— ‘ तवाघाट— ‘ पांगू— ‘ सिरखा— ‘ गाला— ‘ माल्पा— ‘ बुधि— ‘ गुंजी— ‘कालापानी— ‘ लिपू लेख दर्रा— ‘ तकलाकोट— ‘ जैदी— ‘ बरखा मैदान— ‘ तारचेन— ‘ डेराफुक— ‘श्री कैलाश

परीक्षा की दृस्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न : 

मानसरोवर झील कहाँ स्थित है - तिब्बत

 मानसरोवर झील के निकट ही   सिन्धु  ,सतलज, ब्रहमापुत्र नदियों  का उदगम स्थान स्थित है



 

हिल जात्रा

पिथौरागढ़ में आयोजित होने  वाला  हिलजात्रा पर्व मुख्यतः कृषि तथा पशुपालन का उत्सव है। इस पर्व को नेपाल की देन माना जाता है । इस पर्व में  लोक नाट्य मुख्य आकर्षण होता है।  जिसमे लकड़ी के मुखोटे लगाकर विभिन्न तरह की नाट्य  कला  प्रस्तुत की जाती है।  हिलजात्रा लोकनाट्य का मुख्य पात्र लखिया भूत होता है।



खतलिंग रुद्रा देवी यात्रा

खतलिंग-रूद्रा देवी यात्रा-उत्तरांखंड  के ‘पांचवा धाम’ यात्रा के नाम से प्रचलित यह यात्रा टिहरी  जनपद के सीमान्त उच्च हिमालयी क्षेत्र में हर वर्ष सितम्बर माह में होती है।




 

वारुणी यात्रा

इस यात्रा को पंचकोसी वारुणी के नाम से भी जाना जाता है।  इस यात्रा का आयोजन उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में होता है। इस यात्रा में श्रद्धालु उत्तरकाशी में स्थित वरुणावत पर्वत की परिक्रमा कर पुण्यअर्जित करते  है।
ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा को पूर्ण करने वाले व्यक्ति को 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य लाभ मिलता है। 

पंवाली कांठा केदार यात्रा

पंवाली कांठा  केदार यात्रा  टिहरी गढ़वाल के पंवाली कांठा से रूद्रप्रयाग के केदारनाथ तक देवी देवताओं की डोली  के साथ की जाती है।  29 किलोमीटर की यह पैदल यात्रा   अगस्त-सितंबर माह में आयोजित होती है.


सहस्त्र ताल महाश्र ताल यात्रा- उत्तराखंड के टिहरी जिले से शुरू होने वाली यह यात्रा   बूढ़ाकेदार से महाश्र ताल तथा  घूत्तू  होते हुए  उत्तरकाशी जिले के सहस्त्रताल समूह में सम्पन होती है।



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